शनिवार, 13 जून 2009

सम्पूर्ण पोषण- च्यवनप्राश

सम्पूर्ण पोषण - च्यवनप्राश

आयुर्वेद हमारे लिये प्रकृति का अनमोल खजाना है ,इससे निरंतर अमृत वर्षा होती रहती है। जीवनदान एवं पुनर्योवन की एक घटना देवयुग में घटी, च्यवन नाम के तपस्वी निर्जन वन मे तप साधनारत थे, उनका शरीर लताओं से ढका हुआ था। राजा ययाति की सुपुत्रि सुकन्या ने कोतुहलवश संध्याकाल मे ऋषि की चमकती आंखो को तिनके से फोड़ डाला, तत्पश्चात ऋषि की सेवा सुश्रुषा के लिये ययाति ने सुकन्या को सौंप दिया। सुकन्या की प्रार्थना पर अश्विनीकुमारों ने वृद्ध तपस्वी च्यवन को एक अवलेह प्रदान किया, जिसके सेवन से ऋषि पुन: यौवन को प्राप्त हुए अत:अवलेह का नाम च्यवनप्राश पड़ा । जो वरदान स्वरुप है। यह अवलेह सभी अवस्थाओं के व्यक्तिओं के लिये एक विश्वसनीय पौष्टिक आहार एवं सप्तधातु को पुष्ट कर भीतर की शक्ति का विकास कर स्वास्थ्य का संरक्षणकरने वाला, ढलती उम्रके साथ सामान्य कमजोरी थकावट को दूर कर उनमे नई शक्ति, जोश,स्फुर्ति का संचार करने वाला एक प्रमाणिक श्रेष्ठतम अवलेह है।

अलग-अलग कम्पनियां विज्ञापनो मे अपनी-अपनी महत्ता स्थापित करने की पुरजोर कौशिश मे है, लेकिन है तो उनका व्यावसायिक दृष्टिकोण ही, उत्पादन की गुणवत्ता से आप और हम भली भांति परिचित है। निर्माता से आप तक पहुंचती हुई हर वस्तु चार गुणा मंहगी हो जाती है। अपना शरीर अमुल्य है,तो फिर समझोता क्यों?

च्यवनप्राश जैसा दिव्य रसायन हर वर्ष अपने घरपर बनवायें ओर पूरे परिवार को एक एसी रोगप्रतिरोधक क्षमता दीजिये जो इस युग के दुषित वातावरण एवं क्रिमिजाल से बचा सके ।

* सम्बन्धित जानकारी नि:शंकोच नि:शुल्क मंगवाये :-

पं. सत्यनारायण चिकित्सालय एवं अनुसंन्धान केन्द्र , नीम की गली, सुभाष चौक ,चूरू राजस्थान

मोबा- 94142 14338

शतं जीवेत्

आयुर्वेद ज्ञान को सब में बांटे ! आयुर्वेद जीने की कला का नाम है जो जितना अच्छे से जिया उतना ही बडा आयुर्वेदज्ञ हुआ। ह्रास प्रकृति का नियत स्वभाव है, और शरीर व्याधि मंन्दिर इसका बचना मुश्किल है लेकिन बत्तीस दांतो के बीच में जीभ अपनी चतुराई दिखाती है और सदैव सुरक्षित , है ना जीने की कला? हमारा उद्देश्य तभी पूरा होगा जब आप और हम अपने ज्ञान को नि:शंकोच परस्पर बांटे! यह बांटने से बढता है , परिणामस्वरुप शतायु होंगें, स्वस्थ रहेंगें।